Head Office : Ramdhanpur, Bairagi Road Near Harijan Temple, Gaya-823001 (Bihar)
+91-1234567891
kanyavivah327@gmail.com









मुझे वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कन्या विवाह और विकास सोसाइटी की वार्षिक रिपोर्ट साझा करते हुए खुशी हो रही है, जो उस वर्ष में किए गए कार्यों का एक सिंहावलोकन प्रदान करती है। वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण खबर विकलांग लड़कियों की शादी की व्यवस्था, शादी के बाद / शादी से पहले लड़कियाँ को कानूनी मदद, स्वालंबन, स्वास्थ्य और चिकित्सा थी। हमारे समाज में चारों तरफ महिलाओं का चिख पुकार क्या यहीं है हमारा विकसित और शिक्षित समाज ? बड़ी बड़ी बातें बड़े-बड़े नारे, लेकिन धरातल पर बिल्कुल विपरित क्या यही है हमारा विकसित और शिक्षित समाज ? . + बेटों को खुली छुट पढ़ने की लिखने की कहीं आने जाने की बेटियाँ चार दिवारों में कैद क्या यहीं है हमारा विकसित और शिक्षित समाज ? मानव सभ्यता के दो स्तम्भ बालक और बालिका एक मजबूत दूसरा कमजोर, एक स्वतंत्र, दूसरा प्रतंत्र, क्या यही है हमारा विकसित और शिक्षित समाज ? एक तरफ शासन, दूसरी तरफ शोषण एक तरफ निर्भय, आजादी दूसरी तरफ भय और गुलामी क्या यही है हमारा विकसित और शिक्षित समाज ? मानव सभ्यता के दो स्तम्भ बालक और बालिका एक मजबुत, दूसरा कमजोर, एक स्वतंत्र दूसरा परतंत्र, क्या यही है हमारा विकसित और शिक्षित समाज ? एक तरफ शासन, दूसरी तरफ शोष्ण एक तरफ निर्भय, आजादी दूसरी तरफ भय और गुलामी क्या यही है हमारा विकसित और शिक्षित समजा ? यत्र नारी पुज्यन्ते तंत्र देवता बसन्ते क्या कहावत सिर्फ काव्यों और पुस्तकों के लिए ही शुभोभीत है। मैं बोर्ड के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिनके कुशल मार्गदर्शन ने कन्या विवाह और विकास सोसायटी को अब तक आने में मदद की है। में कर्मचारियों द्वारा की गई कई मेहनत के साथ-साथ अनगिनत देखभाल करने वालों, सेवा प्रदाताओं और संस्थापकों के समर्थन को भी स्वीकार करना चाहूंगी।

कन्या विवाह एण्ड विकास सोसाइटी जो कि संस्था के विकास में सांकेतिक भावनात्मक भाषा और संचार और शारीरिक और गति मापदंडों को महत्वपूर्ण से बढ़ाता है। दोस्तों, आजादी के इतने वर्ष बित जाने के बाद भी हमारे समाज की बहु-बेटियां शोषित, पिंड़ित और परंतंत्र है। आज भी वे अशिक्षित एवं डरी हुई हैं जो साधारण घरों कि बेटियां है उनकी बाते तो दूर, जो संभ्रान्त परिवार की बलिकायें हैं ये भी डरी हुई हैं। आज साधारण परिवार में पलने और रहने वाले बालिकाओं के डरे रहने की बातें ततो समझ में आती है लेकिन चाहे बड़े उद्योगपती हो, नेता हों, डाक्टर हों, वकिल हों, प्रोफेसर हो या वैसे लोग जो हमारे समाज की रीढ़ हैं, बुनियाद हैं, मार्गदर्शक हैं वे भी अपने बालिकाओं को लेकर भयभीत रहते हैं। उनके घरों से निकलने पर वे भी सोंचने को बेबश हो जाते हैं. कई तरह की आथांका हमेशा बनी रहती है। विचारणिय विषय तो यह है कि वे कौन से लोग हैं, जिनके वजह से सभी के सभी माता-पिता - भाई भयभीत रहते हैं। आज यदि सर्वे किया जाय तो हम समझते हैं शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिनकी बेटियाँ चुहाएँ घर से निकलें और वे किसी अन्होंनी या आशंका से ग्रसित न हो। इस विचारणिय विषय पर हम सबकों काफी गहराई से सोचना और विचार करना होगा। हमारे विचार में शादी दो दिलों का बंधन दो विचारों का बंधन दो परिवारों का बंधन है। युग-युगान्तर से चली आ रही यह एक परम्परा है। शादी के बाद वर-वधु एक दुसरे की मानसिकता और भावनातम्क स्थितिए जिम्मेवारियाँ क्षमताओं और जीवन शैली को समझ कर उसके अनुरूप स्वयं का ठालने की मानसिक तैयारियाँ करने का अवसर प्रदान करती है। अभिभावक के सहयोग से तय की गयी विवाह को मानने वाले समाज के द्वारा आप परिणय सूत्र में बांधकर दो परिवार क गरिमा को बचाकर सम्पूर्ण समाज को गौरवान्वित किया है।